भूटान यात्रा

भूटान यात्रा: एक एक अनोखी पहल

भूटान यात्रा

भूटान यात्रा: Bhutan Tour Packages

भूटान यात्रा: एक खुसियो वाला देश

भारत की पूर्वोत्तर सीमा से लगा भूटान प्राकृतिक मनमोहक नजारों और बौद्ध संस्कृति  जो एक अद्भुत नजरो का समावेश को समेटे बेहद मनमोहक देश है। दिलचसप बात यह है कि भारतीयों के लिए यहां की यात्रा सुलभ और सस्ती है।

भूटान सँसार के उन कुछ देशों में आता है, जो खुद को शेष संसार से  पटल अपने आप को अलग ही रास्ता चुन रखा है और आज भी काफी हद तक यहाँ विदेशियों का प्रवेश नियंत्रित है। देश की ज्यादातर लोग छोटे गाँव में रहते हैं और पूरी तरह कृषि पर निर्भर हैं। शहरीकरण धीरे-धीरे अपने पाँव जमा रहा है। बौद्ध विचार यहाँ की ज़िंदगी का अहम हिस्सा हैं। तीरंदाजी यहाँ का राष्ट्रीय खेल है।

भूटान के टूर

भूटान के टूर: Thimphu Punakha Paro

भूटान  में ज्यादातर लोग यही के मूलनिवासी हैं, जिन को गांलोप कहा जाता है और इनका निकट का संबंध तिब्बत की कुछ प्रजातियों से है। इसके अलावा यह पर  प्रजातियों में नेपाली है और इनका सम्बन्ध नेपाल राज्य से है। उसके बाद शरछोगपा और ल्होछमपा हैं। यहाँ की आधिकारिक भाषा जोङखा है, इसके साथ ही यहाँ कई अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें कुछ तो विलुप्त होने के कगार पर हैं।

भूटान में आधिकारिक धर्म बौद्ध धर्म की महायान शाखा है, जिसका अनुपालन देश की लगभग तीन चौथाई जनता करती है। भूटान की २५ प्रतिशत जनसंख्या हिंदू धर्म की अनुयायी है। भूटान के हिंदू धर्मी नेपाली मूल के लोग है, जिन्हे ल्होछमपा भी कहा जाता है।

भूटान यात्रा: एक एक अनोखी पहल

भूटान यात्रा: एक एक अनोखी पहल: Bhutan Honeymoon Packages

जब आप भूटान की यात्रा की उड़आन  भरे गे तो सब से पहले आप पारो एयरपोर्ट पर हवाई जहाज लैंड होता है तो लगाता है की समय के हिसाब से जैसे हम 50 साल पीछे  आ गए है | भूटान का छोटा-सा हवाई अड्डा एयरपोर्ट कम एक मठ ज्यादा प्रतीत होता है। भूटान में एक खासतौर से देखने वाली बात ये मिलेगी की इस स्थान पर यहां के राजा और रानी के सिवाय कोई होर्डिंग्स नहीं हैं। आश्चर्य की बात है कि ऐसा भी स्थान है, जहां वस्तुओं को और खरीदने की अपील करते कोई विज्ञापन नहीं हैं। भूटान में दो बड़े शहर हैं पारो और राजधानी थिंपू। दोनों में से पारो ज्यादा सुकून वाला है। भूटान बहुत विरल बसा है। वर्ष 2012 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या 7 लाख 50 हजार के आसपास थी। पारो हरियाली से भरपूर चारों ओर ऊंची पहाड़ियों से घिरी घाटी है। यहां मठों को जोंग कहा जाता है और प्रत्येक नगर में अपना एक जोंग होता है। इनमें सबसे मशहूर पारो का टाइगर नेस्ट है। 3210 मीटर की ऊंचाई पर यह स्थान पारो घाटी से 900 मीटर ऊपर है। यह एक खड़ी चट्टान के शीर्ष पर स्थित दुर्गम स्थान है। यह सैलानियों के लिए पैदल यात्रा की पसंदीदा जगह है।

भूटान में क्या है देखने योग्य चीजे

भूटान में क्या है देखने योग्य चीजे: Best of Bhutan Tour

कौनसे दिनों में क्या होता है यहाँ व भूटान में क्या है देखने योग्य चीजे

कई आकर्षण एक साथ पारो में एक छोटा-सा बाजार भी है, यह पर  लोकल  और रोमांच और खूबसूरत वस्तुओं की खरीददारी की जा सकती है। भूटान की यादगार वस्तुओं में लैमनग्रास ऑइल बहुत मशहूर है। थिंपू में देर रात तक चहल-चपल रहती है, सिर्फ बुधवार, शुक्रवार और शनिवार को। मंगलवार भूटान में ड्राई डे रहता है। यहां सैलानियों के लिए कई आकर्षण हैं, जैसे- सिमतोखा जोंग, बुद्ध केंद्र और छोटा चिड़ियाघर, जहां आप भूटान का राष्ट्रीय पशु ताकिन देख सकते हैं। यह देश पहाड़ियों पर या नदियों के किनारे बने आकर्षक जोंग के साथ बौद्ध लोक संस्कृति से समृद्ध है। यहां के लोग बहुत सभ्य और मृदुभाषी हैं। भारत-भूटान के अच्छे संबंध हैं, जो भारतीय पर्यटकों के लिए सौभाग्य की बात है। अधिकांश पर्यटकों को भूटान में घूमने के लिए प्रति रात प्रति व्यक्ति 250 डॉलर चुकाने होते हैं, लेकिन भारतीयों के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं है। भारतीय टेलीविजन चैनल भूटान में खूब मशहूर हैं, इसलिए यहां काफी लोग हिंदी बोलते हैं। यहां के स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ाई जाती है, जिससे भारतीय पर्यटकों को संवाद में आसानी होती है।

पुनाखा भी जाएं थिंपू से पुनाखा घूमकर दिनभर में आना-जाना कर सकते हैं, हालांकि आप यहां एक रात गुजारने का मन बना सकते हैं। पुनाखा में कई जोंग हैं, साथ ही यह एक प्राकृतिक नजारों वाला स्थान है। यहां पास में ही चिमी लखांग मंदिर है, जो भूटान के एक संत द्रुकपा खुनले को समर्पित है।

भूटान के टूर में खासतौर से इन बातों का ध्यान रखें

भूटान के टूर में खासतौर से इन बातों का ध्यान रखें: Bhutan Packages with Airfare

भूटान के टूर में खासतौर से इन बातों का ध्यान रखें

भूटान में सिर्फ राष्ट्रीय विमान सेवा के तौर पर द्रुक एयर के विमान ही जाते हैं। यहां की यात्रा का सस्ता प्लान भी बनाया जा सकता है। टूर एंड ट्रैवल एजेंसियां भूटान के लिए कई आकर्षक पेकैज की पेशकश करती हैं। यहां आप सिक्किम से सड़क मार्ग से भी प्रवेश कर सकते हैं। इसके लिए आप पासपोर्ट या वोटर आईडी कार्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं। पारो और थिंपू में होटल तथा खाना-पीना हर तरह के बजट में उपलब्ध है। भारतीय रुपए यहां आसानी से स्वीकार्य हैं। भारतीय व्यंजन यहां आसानी से उपलब्ध हैं। स्थानीय स्वाद में इमा दात्सी खाकर देखें। यह मिर्च और पनीर से बनती है।

 भूटान यात्रा संस्मरण

भूटान यात्रा संस्मरण

भूटान यात्रा संस्मरण: भूटान ! तुम बहुत याद आओगे

रात की निर्जनता का सृजन करनेवाले असीम से बातें हो रही थी । बस एक दिन और प्राकृतिक सुरम्यता के दिव्य वातावरण के सुंदर संगम में प्राण प्रवाह के इस तरह लह- लहाने की प्रखर अनुभूति से परिचित कराने हेतु शत-शत नमन!

सुबह हुई। सामान पैक किया। नाश्ते के बाद हम निकल पड़े।  पर्यटन स्थल देखते- देखते पारो जानेवाले थे। बस से नीचे उतरते समय पर्वत श्रुंखलाएँ दिव्य अनुभूति    प्रदान कर रहे थे। बस में बैठे-बैठे पल भर का ध्यान भी असीम शांति दे रहा था।

रकृति का मनोरम दृश्य चित्त को आल्हादित ही नहीं कर रहा था बल्कि हरियाली स्नेह सद्भावना का एहसास करा रहा थी। हमारे साथ गाइड बनकर कुमार आए थे। देखते-ही-देखते  हम पहुँच गए किसी किले की तरह दिखाई देनेवाले चंगङ्घा ल्हाखंग मंदिर में। कुमार कह रहे थे कि यहाँ  नियमित रूप से लोग आते हैं। विशेषतः पालक अपने नवजात शिशुओं को , युवा बच्चों को बच्चों  के रक्षक देवता टैमड्रीम से आशीर्वाद ग्रहण कराने आते हैं। कुमार ने यह भी  कहा कि बारहवीं शताब्दी में तिब्बत के रालुंग से फाजो ड्रूक्गोम शिगपो नमक लामा ने इस जगह को धार्मिक स्थल के रूप में चुना और यहाँ पर इस मंदिर की स्थापना हुई। बहुत से लोग अपने बच्चों को लेकर आ रहे थे। सुंदर-सुंदर प्यारे –प्यारे, गोल-मटोल बच्चों को देख कर मातृत्व उमड़ रहा था। दिल से दुआएँ निकाल रही थीं।

वहाँ से हम सीधे पहुँचे ताकिन संरक्षणवाड़ा में। वैसे तो थिम्फू के आसपास की पहाड़ियाँ ब्लू पाइन के विकासमान जंगलों से आच्छादित है। वांग चू  नदी के किनारे इन्हीं  जंगल के बीचोंबीच ताकिन संरक्षणवाड़ा है । ताकिन  को भूटान का राष्ट्रीय पशु रूप में अपनाया गया है। इस पशु के आगे का भाग एक बड़े बकरे की  तरह है और पिछला हिस्सा गाय की तरह। ऐसे अद्भुत जानवर के बारे में गाईड कुमार का कहना था सन 1455 के आस-पास एक चमत्कारी लामाजी को एक दिन गाय और बकरी की हड्डियाँ बिखरी पड़ी मिली थी। उन्हे चमत्कार दिखाने को कहा गया था। तभी लामा ने बिखरी हड्डियों को जोड़ दिया और जैसे ही प्राण का संचार किया वह जंगल की ओर भाग गया। ये ताकिन उसी के वंशज बताए जाते हैं। है न मजेदार बात ? यहाँ पहुँचते ही फोटो सेशन शुरू हो गया ।

धूप छन-छन गिर रही थी। न जाने गगन जी, सर्जना जी, विश्वंभर जी, कुसुम जी किसे ढूँढ रहे थे। अशोक जी और  ललित जी बतिया रहे थे, अदिति और के.के जी सैलानियों के साथ फोटो खिंचवा रहे थे, प्रभात जी, मनोज जी, कुसुम जी , ॐ प्रकाश जी सभी जब फोटो खिंचवा ही रहे थे तभी  अचानक मैंने देखा एक कुत्ता एक बकरी दोनों एक जगह आराम फरमा रहे हैं। सोचा थोड़ा मैं भी सुस्ता लूँ ? ताकिन घूम रहे थे। मैंने बात करने का प्रयास किया पर वो क्या है  न मेरी भाषा उन्हे समझ में नहीं आई। पर मैंने उनसे वादा किया अगली बार आऊँगी तो हम  घंटों बातें करेंगे।

निकाल पड़ी बस… थिम्फू के केंद्र में स्थित सन 1974 में बना नेशनल मेमोरियल चोर्टेन में तीन स्लेट नक्काशियों के साथ सजाए गए फाटक के अंदर जब प्रवेश किया तो  सामने देखा  सुनहरा शिखर,  छोटा-सा बगीचा,एवं चारों तरफ परिक्रमा करते भूटानी लोग, अद्भुत वास्तुकला और बाईं ओर बड़े-बड़े प्रार्थना पहिए। दौड़ कर गई पहिए घुमाई, चोर्टेन की परिक्रमा कर आई। लकड़ी के तख्ते पर सोकर दंडवत किया। दृष्टि चारों तरफ गई तो देखा चार  खंबों के ऊपर बैठे सिंह की मूर्ति में जंजीर  बंधा हुआ है और ये सभी मंदिर की चोटी तक बंधे हुए हैं। गाइड बदल चुके थे।

पाशांग ने राज बताया प्राचीन काल में यह मंदिर उड़ जाया करता था इसीलिए  ये चारों स्नो लायन बनाया गया ताकि वे प्रहरी के समान बैठे रहें। बाई ओर ढेर सारे कबूतर थे, मन किया मैं भी उड़ूँ। काश ! मेरे भी पंख होते न मैं भी उड़ जाती J

दुनिया में कितने होनहार लोग पैदा हुए जिन्हे सारी दुनिया के सामने अपना ज्ञान, अपनी बुद्धि, अपने हौसले को दिखा पाने का मौका मिला। कितने भाग्यवान पैदा हुए जिन्हे इनकी कृतियों की प्रशंसा करने का सौभाग्य प्राप्त  हुआ। मैं होनहार न सही भाग्यवती हूँ लकी हूँ जी लकी जिसे यह सब देखने का जानने का मौका मिला। बस में गाते –बजाते पहुँचे  थिम्फू घाटी के दक्षिणी तरफ स्थित संगी गाँव के  कुएंसेल फोड्रंग नेचर पार्क में। यहाँ पर शोभित  शाक्यमुनि की डोरडेनमा प्रतिमा दुनियाके सबसे बड़ी और ऊंची प्रतिमाओं में मानी जाती है और यह  बुद्ध पॉइंट के नाम से मशहूर भी है। सर्द हवा, सिर पर धूप, शाक्यमुनि का चमकता सौम्य रूप! 169 फुट (51.5 मीटर) की ऊंचाई लिए यह विशाल प्रतिमा ब्रोञ्ज की बनी है परंतु इस पर सोने का पानी चढ़ाया गया है। बुद्ध के शरीर के अंदरूनी हिस्से के तीन मंजिलों में कई पूजास्थल हैं जो कि 100,000 आठ इंच की और 25000, 12 इंच की बुद्ध मूर्तियाँ से भरा हुआ है ।

इस अद्भुत प्रतिमा को देखकर मन द्रवित हो गया। लगा मुझसे कह रहे हों…उन जैसे बनो जिनकी आत्मा प्रकाशित है, उन जैसे बनो जिनकी आत्मा आश्रय-स्थल है, मेरा एक बंधु खो गया,क्या तुम उसका स्थान लेना पसंद करोगी? पर मैं चुप क्यूँ थी ? सवाल अन्तर्मन को झिंजोड़ रहा था । मोह-माया, इच्छा-काम से भरपूर मैं क्या वितरागी बन सकती हूँ? क्या मेरी आत्मा भी प्रकाशित हो सकती है? आज भी मेरे सामने वही प्रश्न है क्या कोई समझा सकता है ?

पारो की ओर प्रस्थान

थिम्फू और उसके आस-पास की स्मृतियों को सँजोकर पारो की ओर जा रहे थे । पहाड़ के गोल-घुमावदार रास्ते और मेरे मन का अंतर्द्वंद दोनों साथ-साथ चले। तभी नित्यानन्द जी कविता सुना रहे थे? जिसको किसी बुजुर्ग का साया नहीं मिला उसको हमारे गाँव  का बरगद दिखाई दिया

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सच क्या  भगवान गौतम बुद्ध को कोई बुजुर्ग नहीं मिला होगा  जिसकी वजह  से उन्हे  पीपल के नीचे बैठना पड़ा था?

अनुज भूतानि जी सुना रहे थे …

अपना दर्द आँसुओं से  निचोड़ती रही कविता

कई बरसों से किताबों में सोती रही कविता

आँसू लहू बन कागज पर झरते रहे

दर्द  को दिल में ही  सँजोती रही कविता

दर्द  को दिल में ही  सँजोती रही कविता…..

क्या ये शताब्दी का झंकार है? शब्द की प्यास है ? दुख मूल कारण है पीड़ा का ? इंसान प्रेम पाकर दुखी होता है या प्रेम खोकर ? आत्म –परमात्म का यह मिलन है या बिछड़न ?

कुछ ही किलोमीटर में थिम्फू-चू और पारो-चू के संगम (छाजम) के पास थे। तीनों तरफ से घाटियों से फैला बीचों-बीच पारो चू नदी, ऊपर की ओर हरे-भरे घने जंगल, नदी किनारे आकर्षक झोंग सभी कुछ सामने थे…

भूटान के राष्ट्रीय – सांस्कृतिक संग्रहालय में पहुँचे तो सभी आगे चले गए थे…. पैर की उंगली की नस चलने नहीं  दे रही थी। सर्जना जी ने मेथी के दाने सेलो टेप में लगा कर पट्टी बांध दिए । चलने लायक हो गई थी। भूटान के 1500 से भी अधिक साल के सांस्कृतिक विरासत को सहेजे हुए , 3000 से भी ज्यादा भूटानी कला के बेहतरीन नमूने, मूर्तियाँ, भूटान की संस्कृति, जीवन- शैली,ग्रामीण- परिवारों की कलाकृतियों के अलावा ग्रामीण परंपरा,आदर्शों, कौशलों का संरक्षण करता यह संग्रहालय ललित कला, पेंटिंग, वस्त्र,आभूषण, हस्त शिल्प,टिकटें,बुद्ध के धार्मिक स्कूल आदि पेश करता है। समय बीत चला। आस-पास के नजारे तन  की थकान को राहत दिला रहे थे। तस्वीरें ली गई और मैं बस में बैठ गई थी।

फिर हम चले पारो घाटी में स्थित  7वीं सदी में तिब्बत के राजा सोङ्ग्त्सेन गेंपो द्वारा बनवाया गया क्यीचू ल्हाखांग मंदिर की ओर बढ़े…पाशांग ने कहा यह सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। भूटान में सबसे पहले यहीं से बौद्ध धर्म की शुरुआत हुई। इस जगह को आध्यात्मिक खज़ानों का भंडार माना जाता है। तीर-कमान हाथ में लिए तारा देवी, गुरु रिनपोचे, साथ ही अंदर सातवीं सदी के शाक्यमुनि का भव्य मूर्ति सब कुछ आश्चर्य –सा प्रतीत हो रहा था। प्रतिमाओं की ओर देख दिल को तसल्ली मिली। बाहर देखा दो संतरे के पेड़  हैं जिन पर  साल भर फल आते हैं… मान गई कभी मेरे भी मन के बगिए में भक्ति के संतरे साल-भर उगेंगे। हे गुरु देव! मुझे रास्ता दिखाइए !

Bhutan vacation

Bhutan vacation

बाहर बादल हमें चूमने बेताब थे हवा चलने लगी, यहाँ कुछ ज्यादा ही ठंड महसूस हो रही थी। पारो की मार्केट की ओर बढ़े। शाम का समय था ।

देखा आस-पास कोई दुकान नहीं जहां से मैं कुछ मीठा खरीद सकूँ | बिटिया न जाने क्या कर रही होगी, मम्मी जी क्या कर रही होंगी, पति देव को मेरी अनुपस्थिति खलती भी होगी या फिर सुकून की ज़िंदगी जी रहे होंगे मन  में न जाने क्या-क्या चल रहा था ..। विचारों को विराम मिला जब  ओलाथांग के पेलरी कॉटेज में पहुँचे।

देखा आस-पास कोई दुकान नहीं जहां से मैं कुछ मीठा खरीद सकूँ| बिटिया न जाने क्या कर रही होगी, मम्मी जी क्या कर रही होंगी, पति देव को मेरी अनुपस्थिति खलती भी होगी या फिर सुकून की ज़िंदगी जी रहे होंगे मन  में न जाने क्या-क्या चल रहा था । विचारों को विराम मिला जब  ओलाथांग के पेलरी कॉटेज में पहुँचे।

पहुँचते ही मैं और कुसुम कमरे की  चाभी संभालते हुए भागे। कमरे से नजारा खूबसूरत था। दूर ऊँची पहाड़ियाँ , चमकती चोटियाँ , उतरते बादल , हवा की ठंडक बाप रे ! -6 की ठंड -हम दोनों घुस गए रज़ाई के अंदर ।

 Bhutan the country of Gross National

Young men in traditional dress ‘Ghos’ talk with girls dressed in western clothes. Street scene in Thimpu Bhutan’s capital
Bhutan the country that prides itself on the development of ‘Gross National Happiness’ rather than GNP. This attitude pervades education, government, proclamations by royalty and politicians alike, and in the daily life of Bhutanese people. Strong adherence and respect for a royal family and Buddhism, mean the people generally follow what they are told and taught. There are of course contradictions between the modern and tradional world more often seen in urban rather than rural contexts. Phallic images of huge penises adorn the traditional homes, surrounded by animal spirits; Gross National Penis. Slow development, and fending off the modern world, television only introduced ten years ago, the lack of intrusive tourism, as tourists need to pay a daily minimum entry of $250, ecotourism for the rich, leaves a relatively unworldly populace, but with very high literacy, good health service and payments to peasants to not kill wild animals, or misuse forest, enables sustainable development and protects the country’s natural heritage. Whilst various hydro-electric schemes, cash crops including apples, pull in import revenue, and Bhutan is helped with aid from the international community. Its population is only a meagre 700,000. Indian and Nepalese workers carry out the menial road and construction work.

थोड़ी देर बाद खाना खाकर, प्रभात जी के आतिथ्य से गद-गद  होकर  फोटो के अदला-बदली कर पहुँच गए सर्जना जी के कमरे में …मित्रों यह कहना चाहूँगी कि सेल्फ हील क्या होता है यह उनसे जाना हमने। सूजोक पद्धति  की ज्ञाता  सर्जना जी ने  बच्चों  में स्मृति-शक्ति  को सुधारने, उच्च-रक्तचाप का नियंत्रण, कब्ज, साइनस, मधुमेह आदि रोगों के इलाज के सरल उपचार बताए। रात बहुत हो गई थी। हम दोनों कमरे में आकर सो गए। सोने से पहले कुसुम ने सोहर गीत, बिदाई गीत, मिलन गीत गाए – सुनते-सुनते सो गई थी मैं, सुख-निद्रा में खो गई थी मैं।

अगले दिन सुबह का नजारा कैद किया, सब से भावभीनी बिदाई  लेते हुए पारो हवाई अड्डे की ओर प्रस्थान किया । खिड़की से झाँका पर्वत श्रुंखलाएँ ओस से भीगी हुई थी,  दूर एवरेस्ट की पर्वतमालाएँ  सत्य को जानकर भी अंजान बनी हुई थीं।  वे पिघल नहीं पाईं, मन भीगा था  पर मन चला था, चलने लगा था घर की ओर, अपनों की ओर, कुछ पाकर , कुछ खो कर, अपना अस्तित्व ढूँढते हुए,असीम  द्वारा पूछे गए सवालों के साथ, शब्दों में वर्णित तथ्य नहीं अनुभूति जन्य सत्य के साथ  ओ राही, ओ राही …ओ राही,  की सदिये गूंज रही थी एसा लगता है की अभी अभी उसी वादियो में दाढ़ी फिजाओ में | झरोखों की बाहो , सूंदर नजरो जैसे खो से गए है |

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